भगवतगीता के चार मार्ग के नाम लिखो।
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महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।[1]
गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।[2]
महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है।
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श्रीमद्भगवद्गीता में भाग नहीं, अठारह अध्याय हैं। श्रीमद्भागवत गीता_गीता में श्री कृष्ण द्वारा 18 अध्याय का वर्णन किया गया है (ना कि भाग का)और 700 श्लोकों का वर्णन अर्जुन के समक्ष श्री कृष्ण द्वारा किया गया है। गीता भारत देश के एक महान ग्रंथों में से एक है।
1. आत्मा अविनाशी और सनातन है। आत्मा अविनाशी और सनातन होने के कारण, असंख्य शरीर धारण करता है| जिस प्रकार मनुष्य नित्य पुराने वस्त्र उतारकर नये वस्त्र धारण करता है। उसी प्रकार जीवात्मा पुराने और जर्जर शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करता है। आत्मा, अमर, - नित्य, अक्षर, अविकारी, सनातन, पुरातन और अविनाशी है। इस तरह से जीवन में निर्भय होकर जीने का प्रथम मूल सूत्र, आत्म ज्ञान के रूप में कहा है।
2. भगवान श्रीकृष्ण ने इस गीता-सागर के दूसरे अध्याय में, अन्य एक अति सुन्दर मनोवैज्ञानिक सूत्र कहा है| इसमें स्थिर बुद्धि (Stable Mind) और स्थित प्रदत (Steady wisdom) के लक्षण कहे हैं। जिसने सर्व कामनाएं त्याग दी है, जो आत्मा से सन्तुष्ट है, जो सुख और दुःख में समान है, जिसके सर्व राग भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं और जिसकी इन्द्रियाँ मन और बुद्धि के वश में है; वह स्थित प्रज्ञ और स्थिर बुद्धिवाला है।
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