खंड-अ वस्तुपरक प्रश्न
1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
आवश्यकता के अनुरूप प्रत्येक जीव को कार्य करना पड़ता है। कर्म से कोई मुक्त नहीं है। अत्यंत उच्चस्तरीय आध्यात्मिक जीय
जो साधना में लीन है अथवा उसके विपरीत वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति ही कर्महीन रह सकता है। शरीर ऊर्जा का केंद्र है।
प्रकृति से ऊर्जा प्राप्त करने की इच्छा और अपनी ऊर्जा से परिवेश को समृद्ध करने का भाव मानव के सभी कार्यव्यवहारों को
नियंत्रित करता है। अतः आध्यात्मिक साधना में लीन और वैचारिक क्षमता से हीन व्यक्ति भी किसी न किसी स्तर पर कर्मलीन
रहते ही हैं।
गीता में कृष्ण कहते हैं. यदि तुम स्वेच्छा से कर्म नहीं करोगे तो प्रकृति तुमसे बलात् कर्म कराएगी।' जीव मात्र के कल्याण की
भावना से पोषित कर्म पूज्य हो जाता है। इस दृष्टि से जो राजनीति के माध्यम से मानवता की सेवा करना चाहते हैं उन्हें उपेक्षित
नहीं किया जा सकता। यदि देउचित भावना से कार्य करे तो वे अपने कायों को आध्यात्मिक स्तर तक उठा सकते हैं।
यह समय की पुकार है। जो राजनीति में प्रवेश पाना चाहते हैं, वे यह कार्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण लेकर करें और दिनप्रतिदिन
आत्मविश्लेषण, अंतर्दृष्टि, सतर्कता और सावधानी के साथ अपने आप का परीक्षण करे, जिसमें वे सन्मार्ग से भटक न जाएँ।
राजेंद्र प्रसाद के अनुसार “सेवक के लिए हमेशा जगह खाली पड़ी रहती है। उम्मीदवारों की भीड़ सेवा के लिए नहीं हआ करती।
भीड तो सेवा के फल के बँटवारे के लिए लगा करती है जिसका ध्येय केवल सेवा है, सेवा का फल नहीं, उसको इस धयका-
मुरकी में जाने की और इस होड़ में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
1. कर्म में से मुक्ति संभव क्यों नहीं है
i क्योंकि कर्मी ऊर्जा का साधन है
iiक्योंकि कर्मी श्रेष्ठ है
iii क्योंकि कर्म करना आवश्यक है
ivक्योंकि कर्म से कोई मुक्त नहीं है
2.सच्चे सेवक की पहचान क्या है
i वह हमेशा भरी हुई जगह को भर देता है ii वह हमेशा खाली पड़ी जगह को भर देता है iiiवह सच्ची सेवा करता है ivवह सेवा नहीं करता है
3 मनुष्य स्वयं को आध्यात्मिक स्तर तक कब उठा सकता है i जब वह स्वेच्छा से कर्म करता है ii जब एक कल्याण की भावना से मानवता की सेवा नहीं कर सकता iiiजब वह कल्याण की भावना से मानवता की सेवा करता है ivजब वह स्वेच्छा से कर्म नहीं करता है
4 शक्ति हमसे कब बलात कर्म करवाती है i जब हम स्वेच्छा से कर नहीं करते हैं ii जब हम स्वेच्छा से कर्म करते हैं iiiजब हम आध्यात्मिक साधना में लीन होते हैं iv जब हम सेवा कार्य करते हैं
5 किस प्रकार का कर्म पूजा हो जाता है i.जो पूजनीय होता है ii जिसमें जीव मात्र के कल्याण भावना निहित होती है iiiजिसमें जीव मात्र के कल्याण भावना नित्य नहीं होती है ivइनमें से कोई नहीं
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