प्रवासी मजदूरों की एक लघु कथा 100 से 120 शब्दों में लिखिए।
अथवा
किसी भी महापुरुष 100 से 120 शब्दों में लघुकथा के रूप में लिखिए।
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बच्चों का मन हर पल नई-नई चीजों को जानने और सीखने के लिए उत्साहित रहता है। यही नई चीजें अगर उन्हें मजेदार तरीके से सिखाई जाएं, तो वो और भी आसानी से इन्हें सीख सकते हैं और इस काम में कहानियां आपकी मदद कर सकती हैं।ये कहानियां ही होती हैं, जो बच्चों की कल्पनाओं की दुनिया को खूबसूरत बनाने में मदद करती है। कहानियां न सिर्फ बच्चों के मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि खेल-खेल में उनके जीवन को बेहतर बनाने का एक आसान तरीका भी हैं। एक छोटी-सी कहानी बच्चों के मन में कल्पनाओं के नए द्वार खोलती है और अंत में बताए गई सीख उन्हें बचपन से ही अच्छे-बुरे चीजों में फर्क करना सिखाती है। इतना ही नहीं बच्चों का मन बहुत चंचल होता है, हो सकता है लंबी कहानियां उन्हें अपनी ओर खींचने में असफल हो। यही वजह है कि हम कहानियां के इस सेक्शन में बच्चों के लिए लघु कहानियां लेकर आए हैं। शरारत करते बच्चों को शांत करना हो या रात को उन्हें गहरी नींद में सुलाना हो, लघुकथा अपना काम बखूबी करती है। ये लघु कथाएं न सिर्फ मजेदार हैं, बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं। ये लघु कहानियां न सिर्फ छोटे बच्चों को खुश करेंगी, बल्कि बड़ों को भी उनके बचपन की यादें ताजा करने का मौका मिलेगा।
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Explanation:
आज मजदूर दिवस है; कोरोना के चलते लगाया यह लॉकडाउन देश के प्रवासी मजदूरों के लिए सबसे मुश्किल रहा है
गुजरात से अपने घर असम पहुंचे जादव, वहीं बिहार के रामजी महतो दिल्ली से घर को निकले, लेकिन वाराणसी पहुंचकर उनकी मौत हो गई
देश में कोरोना के चलते अचानक लगाया लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। उन्हें जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे।
ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा। हाथ में न के बराबर पैसा था। और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे।x
कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर तो कुछ तीन पहियों वाले उस साइकिल रिक्शे पर जो उनकी कमाई का साधन था। जो फासला तय करना था वह कोई 20-50 किमी नहीं बल्कि 100-200 और 3000 किमी लंबा था।
1886 की बात है। तारीख 1 मई थी। अमेरिका के शिकागो के हेमोर्केट मार्केट में मजदूर आंदोलन कर रहे थे। आंदोलन दबाने को पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें कुछ मजदूर मारे भी गए। प्रदर्शन बढ़ता गया रुका नहीं। और तभी से 1 मई को मारे गए मजदूरों की याद में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
आज फिर 1 मई आई है। इस बार थोड़ी अलग भी है। इसलिए, मजदूर दिवस पर लॉकडाउन में फंसे, पैदल चले और अपनी जान गंवा बैठे प्रवासियों के संघर्ष और सफर की पांच
vपहली कहानी : मुंबई से 500 दूर उप्र सिर्फ बिस्किट खाकर निकले थे, घर तो पहुंचे लेकिन मौत हो गई
उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले का इंसाफ अली मुंबई में एक मिस्त्री का हेल्पर था। लॉकडाउन की वजह से काम बंद हुआ तो घर पहुंचने की ठानी। इंसाफ 13 अप्रैल को मुंबई से यूपी के लिए निकल पड़ा। 1500 किमी के सफर में ज्यादातर पैदल ही चला। बीच-बीच में अगर कोई गाड़ी मिल जाती, तो उसमें सवार हो जाता। जैसे-तैसे 14 दिन बाद यानी 27 अप्रैल को इंसाफ अपने गांव मठकनवा तो पहुंच गया, लेकिन वहां क्वारैंटाइन कर दिया गया। उसी दिन दोपहर में इंसाफ की मौत हो गई। पत्नी सलमा बेगम का कहना था कि इंसाफ ने उसे फोन पर बताया था कि वह सिर्फ बिस्किट खाकर ही जिंदा है।