नई कहानी पर टिप्पणी लिखिए 150 शब्दों में।
Share
नई कहानी पर टिप्पणी लिखिए 150 शब्दों में।
Sign Up to our social questions and Answers Engine to ask questions, answer people’s questions, and connect with other people.
Login to our social questions & Answers Engine to ask questions answer people’s questions & connect with other people.
Answer:
पहली कहानी कौन
कहानी के तत्वों की पर्याप्त उपस्थिति के आधार पर हिंदी कहानियों के वर्गीकरण की श्रंखला में "हिंदी की पहली कहानी" का प्रश्न विवाद ग्रस्त है। सबसे प्राचीन कहानियों में, कालक्रम की दृष्टि से सैयद इंशा अल्लाह खान द्वारा 1803 या 1808 ईस्वी में रचित "रानी केतकी की कहानी" जहां मध्यकालीन किस्म की किस्सागोई मात्र है, जो पारसी थियेटर के लटको- झटको से भरी है; वहीं 1871 ईस्वी में अमेरिकी पादरी रेवरेंड जे. न्यूटन द्वारा रचित कहानी "एक जमीदार का दृष्टांत" आदर्शवादी धर्म प्रचारक दृष्टिकोणान्मुख-आंतरिक संरचना की दृष्टि से कमजोर रचना है। इसी क्रम में किशोरी लाल गोस्वामी की " प्रणयिनी परिणय", राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिंद' की "राजा भोज का सपना", भारतेंदु हरिश्चंद्र कृत "एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न" भी अपने परंपरागत स्वरूप के कारण कहानी की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में 'सरस्वती' तथा अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित किशोरी लाल गोस्वामी कृत 'इंदुमति', माधवराव सप्रे द्वारा रचित "एक टोकरी भर मिट्टी", आचार्य रामचंद्र शुक्ल कृत "ग्यारह वर्ष का समय" तथा राजेंद्र वाराघोष बंग महिला द्वारा रचित "दुलाईवाली" आदि कहानियों की गिनती भी हिंदी की पहली कहानी बनने की होड़ में की जाती है। उपर्युक्त कहानियों में से "इंदुमती" (1900 ई.) को शुक्ल जी इस शर्त पर 'हिंदी की पहली कहानी' मानते हैं कि वह किसी बंगला कहानी की छाया ना हो। बाद में उसे शेक्सपियर की रचना "द टेंपेस्ट" से प्रभावित पाए जाने पर की हिंदी की पहली कहानी बनने की होड़ से बाहर कर दिया गया।
विकास का पहला दौर
वस्तुत: सन 1900 ई॰ से 1915 ई॰ तक हिन्दी कहानी के विकास का पहला दौर था। मन की चंचलता (माधवप्रसाद मिश्र) 1907 ई॰ गुलबहार (किशोरीलाल गोस्वामी) 1902 ई॰, पंडित और पंडितानी (गिरिजादत्त वाजपेयी) 1903 ई॰, ग्यारह वर्ष का समय (रामचंद्र शुक्ल) 1903 ई॰, दुलाईवाली (बगमहिला) 1907 ई॰, विद्या बहार (विद्यानाथ शर्मा) 1909 ई॰, राखीबंद भाई (वृन्दावनलाल वर्मा) 1909 ई॰, ग्राम (जयशंकर 'प्रसाद') 1911 ई॰, सुखमय जीवन (चंद्रधर शर्मा गुलेरी) 1911 ई॰, रसिया बालम (जयशंकर प्रसाद) 1912 ई॰, परदेसी (विश्वम्भरनाथ जिज्जा) 1912 ई॰, कानों में कंगना (राजाराधिकारमणप्रसाद सिंह)1913 ई॰, रक्षाबंधन (विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक') 1913 ई॰, उसने कहा था (चंद्रधर शर्मा गुलेरी) 1915 ई॰, आदि के प्रकाशन से सिद्ध होता है कि इस प्रारंभिक काल में हिन्दी कहानियों के विकास के सभी चिन्ह मिल जाते हैं। 1950 ई° तक हिन्दी कहानी का एक विस्तृत दौर समाप्त हो जाता है और हिन्दी कहानी परिपक्वता के दौर में प्रवेश करती है।
दूसरा दौर संपादित करें
प्रेमचंद और प्रसाद संपादित करें
सन 1916 ई॰, प्रेमचंद की पहली कहानी सौत प्रकाशित हुई। प्रेमचंद के आगमन से हिन्दी का कथा-साहित्य समाज-सापेक्ष सत्य की ओर मुड़ा। प्रेमचंद की आखिरी कहानी 'कफन' 1936 ई॰, में प्रकाशित हुई और उसी वर्ष उनका देहावसान भा हुआ। बीस वर्षों की इस अवधि में कहानी की कई प्रवृत्तियाँ उभर कर आईँ। किंतु इन प्रवृत्तियों को अलग अलग न देखकर यदि समग्रत: देखा जाय तो इस समूचे काल को आदर्श और यथार्थ के द्वन्द्व के रूप में लिया जा सकता है। इस कालावधि में 'प्रसाद' और प्रेमचंद कहानियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रसाद मुख्यत रोमैंटिक कहानीकार हैं। किंतु उनके अंतिम कहानी संग्रह 'इंद्रजाल' (1936 ई॰) में संग्रहीत इन्द्रजाल, गुंडा, सलीम, विरामचिन्ह से उनकी यथार्थोंमुखी प्रवृत्ति को पहचाना जा सकता है। पर रोमैंटिक होने के कारण वे आदर्शवादी थे। प्रेमचंद ने अपने को आदर्शोंमुखी यथार्थवादी कहा है। वस्तुत: वे भी आदर्शवादी थे। किंतु अपने विकास के अंतिम काल में वे यथार्थ की कटुता को भोगकर यथार्थवादी हो गए। 'पूस की रात' और 'कफन' इसके प्रमाण हैं। सन '33 में निराला का एक संग्रह 'लिली' प्रकाशित हो चुका था। उसकी कहानियाँ बहुत कुछ यथार्थवादी ही हैं।