क्रांतिकारियों ने अत्याचारी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की राज्य और सिर पर कफन बांध कर उसमें कूद पड़े
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क्रांतिकारियों ने अत्याचारी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की राज्य और सिर पर कफन बांध कर उसमें कूद पड़े
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Explanation:
सर पे कफन बाँध लो अपने,दुश्मन ने ललकारा है,
जाग जाओ अब सोने वालो,भारत माँ ने पुकारा है,,
वक्त नहीं है अब सोने का अब तो कुछ करना होगा,
इन पागल कुत्तों का अब तो निशां साफ करना होगा,,
आदेश करो अब दिल्ली से,सेना के बन्धन तोड़ो तुम,
आतंक जाति के कुत्तों पर,शेर हिन्द के अब छोड़ो तुम,,
घाव कसकता है सीने में,लहू तरंगें भरता है,
लाशें देख देख वीरों की,लहू आँख से बहता है,,
आओ आज निभा जायें हम,जो कर्तव्य हमारा है,,
सर पे कफन बाँध लो अपने, दुश्मन ने ललकारा है,,
सोचों क्या बीती होगी, अपने उन सब शेरों पर,
उढ़ाया होगा जब तिरंगा लाशों के उन ढेरों पर,,
बाजू फड़क गये होंगे और भभके सीने होंगे,,
शेरों ने शेरों के टुकड़े ,जब हाथों से बीने होंगे,
गर भूल गए हम ये कुर्बानी, बेकार हमारा जीना है,,
किस मुँह से हम बोलेंगे कि छप्पन इंची सीना है,,
बदला माँग रही कुर्बानी, तुम पर कर्ज हमारा है,,
सर पे कफन बाँध लो अपने, दुश्मन ने ललकारा है,,
आँसू नहीं अब इन आँखों में,बारूदों के अंगार भरो,
निशां मिटा दो धरती से अब,दुश्मन का संहार करो,,
आर पार की करो लड़ाई, जो होगा देखा जायेगा,,
बार बार होने से अच्छा सब एक बार हो जायेगा,,
भारत माँ की तुम्हें कसम है, औ सौगंध है गंगे की,
माँ के दूध का कर्ज चुका दो,रख लो लाज तिरंगे की,,
नहीं खोखली हड्डी अपनी, ना पानी लहू हमारा है,,
सर पर कफन बाँध लो अपने भारत माँ ने पुकारा है,,