मेरी प्रबल अभिलाषा 250 -300 शब्दों में निबंध...
Sign Up to our social questions and Answers Engine to ask questions, answer people’s questions, and connect with other people.
Login to our social questions & Answers Engine to ask questions answer people’s questions & connect with other people.
Answer:
लछमा
धुल-धुलकर धूमिल हो जाने वाले पुराने काले लहँगे को एक विचित्र प्रकार से खोंसे, फटी मटमैली ओढ़नी को कई फेंट देकर कमर मे लपेटे और दाहिने हाथ मे एक बड़ा सा हँसिया सँभाले लछमा, नीचे पड़ी घास पत्तियों के ढेर पर कूदकर खिलखिला उठी। कुछ पहाड़ी और कुछ हिन्दी की खिचड़ी में उसने कहा- ‘ हमारे लिये क्या डरते हो! हम क्या तुम्हारे जैसे आदमी है! हम तो है जानवर! देखो हमारे हाथ पाँव देखो हमारे काम! ‘ मुक्त हँसी से भरी पहाड़ी युवती, न जाने क्यो मुझे इतनी भली लगती है।
धूप से झुलसा हुआ मुख ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी ने कच्चे सेब को आग की आंच पर पका लिया हो। सूखी-सूखी पलकों में तरल तरल आँखें ऐसी लगती है, मानो नीचे आँसूओं के अथाह जल में तैर रही हों और ऊपर हँसी की धूप से सूख गयी हों।
शीत सहते सहते ओठों पर फ़ैली नीलिमा, सम दांतों की सफेदी से और भी स्पष्ट हो जाती है। रात दिन कठिन पत्थरों पर दौड़ते-दौड़ते पैरो मे और घास काटते-काटते और लकड़ी तोड़ते-तोड़ते हाथों में कठिनता आ गई है, उसे मिट्टी की आर्द्रता ही कुछ कोमल कर देती है।
एक ऊँचे टीले पर लछमा का पहाड़ के पड़े छाले जैसा छोटा घास-फ़ूस का घर है।
बाप की आंखें खराब है, माँ का हाथ टूट गया है, और भतीजी-भतीजे की माता परलोकवासिनी और पिता विरक्त हो चुका है। सारांश यह है कि लछमा के अतिरिक्त और कोई व्यक्ति इतना स्वस्थ नहीं, जो इन प्राणियों की जीविका की चिन्ता कर सके। और इस निर्जन में लछमा कौन सा काम करके इतने व्यक्तियों को जीवित रखे, यह समस्या कभी हल नही हो पाती। अच्छे दिनों की स्मॄति के समान एक भैंस है। लछमा उसके लिये घास और पत्तियां लाती हैं। दूध दूहती, दही जमाती और मट्ठा बिलोती है। गर्मियों मे झोपड़े के आसपास कुछ आलू भी बो लेती है; पर इससे अन्न का अभाव तो दूर नहीं होता! वस्त्र की समस्या तो नही सुलझती!
–लछमा की जीवन-गाथा उसके आँसूओं में भीग-भीगकर अब इतनी भारी हो चुकी है कि कोई अथक कथावाचक और अचल श्रोता भी उसका भार वहन करने को प्रस्तुत नहीं।