वेषभूषा और खान-पान की विविधता पर अपने विचार प्रकट करो
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वेषभूषा और खान-पान की विविधता पर अपने विचार प्रकट करो
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समस्तीपुर। भारत की विविधता इसकी सबसे बड़ी खासियत और सबसे बड़ी खूबसूरती है। यह ढेर सारी संस्कृतियों का समुच्चय है। इसकी सभ्यता का पूरा विश्व कायल रहा है। दुनिया के अनेक विद्वानों ने इस विविधता का अध्ययन किया है और यह हकीकत है कि भारत की सभ्यता बची है तो इसी विविधता की वजह से। ये बातें राजकीयकृत उच्च विद्यालय हरपुर ¨सघिया जगत¨सहपुर के प्राचार्य डॉ. संजय प्रसाद ने कही। उन्होंने कहा कि दुनिया की सारी सभ्यताएं खत्म हो गईं तो भारत का बचे रहना अपने आप में एक बड़ा रहस्य है। यह दुनिया के तमाम पुरात्ववेत्ताओं को हैरान करने वाली बात है कि भारत की सभ्यता में कई चीजें ऐसी हैं, जो दशकों या सदियों से नहीं, बल्कि सहस्त्राब्दियों से एक जैसी चली आ रही है। यहीं सभ्यता की निरंतरता है। भौगोलिक ²ष्टि से भारत विविधताओं का देश है, फिर भी सांस्कृतिक रूप से एक इकाई के रूप में इसका अस्तित्व प्राचीनकाल से बना हुआ है। इस विशाल देश में उत्तर का पर्वतीय भू-भाग, जिसकी सीमा पूर्व में ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में सिन्धु नदियों तक विस्तृत है। इसके साथ ही गंगा, यमुना, सतलुज की उपजाऊ कृषि भूमि, विन्ध्य और दक्षिण का वनों से आच्छादित पठारी भू-भाग, पश्चिम में थार का रेगिस्तान, दक्षिण का तटीय प्रदेश तथा पूर्व में असम और मेघालय का अतिवृष्टि का सुरम्य क्षेत्र सम्मिलित है। इस भौगोलिक विभिन्नता के अतिरिक्त इस देश में आíथक और सामाजिक भिन्नता भी पर्याप्त रूप से विद्यमान है। वस्तुत: इन भिन्नताओं के कारण ही भारत में अनेक सांस्कृतिक उपधाराएँ विकसित होकर पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। भारतीय संस्कृति की विविधता दर्शाने भारत विविधताओं वाला देश है। पानी की निकासी और बड़े से आंगन वाले घर ¨सधु घाटी की सभ्यता में होते थे, तो आज भी होते हैं। पूजा की जो पद्धति तीन हजार साल पहले या उससे पहले प्रचलित थी, वह आज भी प्रचलित है। खान पान से लेकर पहनावे और घर-परिवार की व्यवस्था से लेकर पूजा पद्धति तक अनेक ऐसी चीजें हैं, जो भारतीय समाज में बनी रही हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हर चीज में बड़ी विविधता रही है। भारत में हमेशा यह विविधता रही। विचारों से लेकर रहन सहन और दर्शन तक में यह विविधता दिखती है। प्राचीन भारतीय समाज में अगर मूíतपूजक थे तो मूíतभंजक भी थे, शैव थे तो वैष्णव भी थे, त्याग करने वाले योगी थे तो भोग करने वाले योगी भी थे, अपनी हड्डियां गला कर हथियार बनाने वाले दधिची ऋषि थे तो ऋण लेकर घी पीने की सलाह देने वाले ऋषि भी थे। इस विविधता ने भारतीय सभ्यता को हजारों साल के समय की धारा में बहने या बदलने नहीं दिया। अगर सभ्यता और संस्कृति में एकरूपता होती, जैसा कि दुनिया की कई संस्कृतियों में है या हा था, तो शायद इसका भी अस्तित्व मिट चुका होता और इसी जमीन पर नई सभ्यता पनप गई होती। सो, बचे रहने के लिए इस विविधता का सम्मान जरूरी है। यह समझना जरूरी है कि दुनिया के किसी दूसरे देश में इतनी विविधता नहीं है और यह अनायास नहीं है। बहुत सोच विचार के साथ इसे बनाए रखा गया है। इसे खत्म करने की कोई भी कोशिश अंतत: एक पूरी सभ्यता को नुकसान पहुंचाएगी। भारत की विविधता के कई स्तर हैं। खान पान उनमें से एक है। इसके अलावा भाषा-बोली, पहनावा, सामाजिक रीति रिवाज, पूजा पद्धति, रंग आदि कई चीजें हैं, जिनमें विविधता है। इस विविधता का सम्मान होना चाहिए और उसका उत्सव मनाया जाना चाहिए। लेकिन ठीक इसका उलटा हो रहा है। 1990 के दशक में जब देश उदारीकरण के रास्ते पर चला तो इसका पहला हमला हुआ था। वह ग्लोबल हमला था। अमेरिका या विकसित पश्चिम दुनिया को अपने रंग में रंगना चाहता है। सारी दुनिया वहीं पहने जो वे पहनते हैं, वहीं देखे तो वे देखते हैं, वहीं खाए जो वे खाते हैं और करें भी वहीं, जो वे करते हैं। तभी एक डेनिम, बर्गर, पिज्जा, कोल्ड ¨ड्रक्स, पॉप म्यूजिक और सुपरहीरो वाली फिल्मों का असर भारत में महामारी की तरह हुआ। भारत में चार कोस पर वाणी में विविधता प्रकट होने लगती है, लोगों की वेशभूषा और खानपान में अंतर नजर आने लगते हैं। पूर्व,पश्चिम, उत्तर, दक्षिण- इन चारों कोनों के निवासियों की वेशभूषा, व्यक्तित्व, रंग, भाषा आदि वहां की भौगोलिक स्थिति और परिवेश के अनुसार निर्धारित होती है।
शिक्षक मंगलेश कुमार ने कहा है कि प्रत्येक नागरिक को केवल ऊपरी तौर पर नहीं, बल्कि आंतरिक तौर पर इस बात को गहनता से जानना व मानना चाहिए कि भारत की विविधता का एक अनूठा सौंदर्य है। भारत के नागरिकों का अलग -अलग स्वरूप पूरे देश को पूर्णता प्रदान करता है, मधुर संगीत की तान छेड़ता है। यदि संगीत में एक ही सुर होता, तो संगीत का आनंद कहां रह जाता? इसी तरह यदि पूरे विश्व में चेहरों, खानपान, बोली आदि में भिन्नता न होती, तो हर ओर एकरसता पसर जाती। जिन स्थानों पर हमेशा बर्फ अथवा कालिमा छाई रहती है वहां के लोगों का जीवन बेहद उदासीन और नीरस हो जाता है।
विविधताओं से सीख लेने की जरूरत
शिक्षक प्रदीप कुमार ने कहा है कि हम बेहद सौभाग्यशाली हैं, जो भिन्न-भिन्न ऋतुओं, मौसमों, खानपान और एक-दूसरे की संस्कृति को देखते हैं व इनका आनंद उठाते हैं। हमें इन विविधताओं का सम्मान करना चाहिए। इनसे सीख लेनी चाहिए और अपने दिमाग से इस बात को बिल्कुल निकाल देना चाहिए कि अमुक प्रदेश के वासी अच्छे नहीं हैं अथवा शारीरिक रूप से सुंदर नहीं हैं या फिर उनमें कोई और कमी है। प्रत्येक व्यक्ति संपूर्ण एवं अपूर्ण दोनों ही है।
ई है।