राजनीतिक अधिकारों को समझाइए
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राजनीतिक अधिकारों को समझाइए।
राजनीतिक अधिकार से तात्पर्य उन अधिकारों से है, जो देश के सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता के स्तर पर रखते है और किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी करने का अधिकार देते हैं।
व्याख्या :
दो राजनीतिक अधिकार इस प्रकार हैं :
निर्वाचित होने का अधिकार : देश का कोई भी नागरिक किसी भी क्षेत्र से, किसी भी सरकारी चुनाव प्रक्रिया में निर्धारित मानदंडों के अनुसार भाग ले सकता है। वो सांसद के चुनाव में खड़ा हो सकता है, वो विधायक के चुनाव में खड़ा हो सकता है, वो नगरसेवक अथवा ग्राम पंचायत के चुनाव में खड़ा हो सकता है। यह उसका राजनीतिक अधिकार है।
मतदान करने का अधिकार : देश के सभी नागरिकों को समान स्तर पर अपने मनपसंद प्रतिनिधि को मतदान करने का पूर्ण अधिकार है। देश के हर नागरिक के मत का मूल्य एक समान है।
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राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। इनमें वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं। राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं। जिनके माध्यम से व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन प्रबन्ध में भाग लेते है। साधारणतया एक प्रजातन्त्रात्मक राज्य के द्वारा अपने नागरिकों को निम्नलिखित राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं :
(1) मत देने का अधिकार : जनता मताधिकार के माध्यम से ही देश के शासन में भाग लेती है और मतदान को प्रजातन्त्र की आधारशिला कहा जा सकता है। वर्तमान समय व्यापक बनाने की है और इसलिए अधिकांश देशों में वयस्क मताधिकार को अपना लिया गया है।
(2) निर्वाचित होने का अधिकार : प्रजातन्त्र में शासक और शासित का कोई भेद नहीं होता और योग्यता सम्बन्धी कुछ प्रतिबन्धों के साथ सभी नागरिकों को जनता के प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित होने का अधिकार होता है। इसी अधिकार के माध्यम से व्यक्ति देश की उन्नति में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है।
(3) सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार : व्यक्ति को सभी सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार होना चाहिए और इस सम्बन्ध में योग्यता के अतिरिक्त अन्य किसी आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए।
(4) आवेदन-पत्र और सम्मति देने का अधिकार : लोकतन्त्र का आदर्श यह है कि शासन का संचालन जनहित के लिए किया जाये। अतः नागरिकों को अपनी शिकायतें दूर करने या शासन को आवश्यक सम्मति प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कार्यपालिका या व्यवस्थापिका अधिकारियों को प्रार्थनापत्र देने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। इसके अन्तर्गत ही शासन की आलोचना का अधिकार भी सम्मिलित किया जाता है।
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