वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके तहत लोकतंत्र सामाजिक विविधता को समायोजित करता है?
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वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके तहत लोकतंत्र सामाजिक विविधता को समायोजित करता है?
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सामाजिक विभाजन और राजनीति:
आपने जीव विज्ञान की कक्षा में डार्विन के क्रमिक विकास के सिद्धांत के बारे में पढ़ा होगा। इस सिद्धांत के अनुसार जो सबसे फिट होता है वही जिंदा रह पाता है। मनुष्यों को अपना जीवन सही तरीके से जीने के लिए आर्थिक रूप से तरक्की करनी होती है। जब कोई व्यक्ति आर्थिक तरक्की कर लेता है तो उसे समाज में ऊँचा स्थान मिल जाता है। हर देश के इतिहास में यह देखने को मिलता है कि आर्थिक रूप से संपन्न समूह ने आर्थिक रूप से कमजोर समूह पर शासन किया है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि संसाधन और शक्ति के स्रोतों पर किसी खास समूह का एकाधिकार कायम हो सके।
सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम तीन बातों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं:
लोग अपनी सामाजिक पहचान को किस रूप में लेते हैं इससे सामाजिक विविधता का राजनीति पर परिणाम तय होता है। यदि किसी खास समूह के लोग अपने को विशिष्ट मानने लगते हैं तो फिर वे सामाजिक विविधता को गले नहीं उतार पाते हैं।
किसी समुदाय की मांगों को राजनेता द्वारा किस तरह से पेश किया जाता है।
यह इस पर भी निर्भर करता है कि किसी समुदाय की मांग पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होती है। यदि सरकार किसी समुदाय की मांग को उचित तरीके से मान लेती है तो फिर उस समुदाय की राजनीति सबल हो जाती है।
प्राचीन भारत में समाज को कार्य के आधार पर चार समूहों में बाँटा गया था। समय बीतने के साथ इन चार समूहों का स्थान जाति व्यवस्था ने ले लिया। जाति व्यवस्था में जन्म को ही किसी व्यक्ति के कर्म का आधार मान लिया जाता है। कुछ काम ऊँची जाति के लोग ही कर सकते हैं, जबकि कुछ काम केवल नीची जाति के लोगों के लिए तय होते हैं।
आजादी के कुछ वर्षों पहले तक सभी आर्थिक संसाधन ऊँची जाति के लोगों के हाथों में थे। इन लोगों ने नीची जाति के लोगों को दबाकर रखा था ताकि नीची जाति के लोग सामाजिक व्यवस्था में ऊपर न उठ सकें।
अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में आधुनिक शिक्षा पद्धति की शुरुआत की थी। आजादी के बाद की सरकारों ने भी शिक्षा को बढ़ावा दिया। इससे पिछड़े वर्गों के लोग भी आधुनिक शिक्षा का लाभ उठाने लगे। मीडिया ने भी समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया।
धीरे-धीरे समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों में जागरूकता फैलने लगी। इसके दूरगामी परिणाम हुए हैं। आज लगभग हर क्षेत्र में नीची जाति के लोगों का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। आज नीची जाति के लोग ऊँचे पदों पर आसीन दिखते हैं।
आज सरकारी तंत्र में समाज के लगभग हर वर्ग का प्रतिनिधित्व दिखाई देता है। इससे यह पता चलता है कि समाज के हर वर्ग को सत्ता में साझेदारी मिलने लगी है। भारत एक मजबूत लोकतंत्र बनने की दिशा में अग्रसर है।