विद्यालय न होता तो हिन्दी निबंध
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अगर स्कूल न होते तो क्या होता? इस सवाल पर पहली प्रतिक्रिया मिलती है, “पढ़ाई कैसे होती?” इस जवाब से जाहिर है कि हम ऐसे समाज की कल्पना भी नहीं कर पाते, जिसमें स्कूल न हों। जॉन डिवी ने इसके बारे में लिखा है कि स्कूल समाज की आवश्यकता है।
बच्चों की मौज होती, संग दोस्तों की टोली होती
जब बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं तो पैरेंट्स को काफी परेशानी होती है। घर के लोग कहते हैं कि आज स्कूल नहीं है। इसलिए बच्चे इतनी शरारत कर रहे हैं। यानि अगर स्कूल जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती तो बच्चों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी क्या होती? उनका समय कैसे बीतता, यह सवाल भी सामने आता है। इसका जवाब हो सकता है कि बच्चे घरेलू कामों को देखते। उनको जो पसंद आता करते। बड़ों की ज़िंदगी को ग़ौर से देखते-समझते। अपने सामाजिक अनुभवों की दुनिया को संपन्न बनाते। ऐसे में वे निरा सैद्धांतिक जीव नहीं होते। उनकी बातों में अनुभव का पुट होता। वे रियल टाइम रिस्पांस करने वाले बच्चे होते। वे स्कूल जाने वाले मासूम बच्चों से बिल्कुल अलग और आत्मविश्वास से लबरेज होते।
हो सकता है बच्चे बड़ों के पीछे-पीछे उनके साथ खेत, कारखाने, कंपनी और काम की जगहों पर जाते। या बड़े उनको कोई काम देकर उलझाकर रखते कि दोपहर या शाम तक इस काम को पूरा कर लेना। जैसा की गर्मी की छुट्टियों में ज़्यादार स्कूल किया करते हैं कि छुट्टियों के दिनों की संख्या को ध्यान में रखते हुए ढेर सारा होमवर्क दे देते हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई से एक रिश्ता बना रहे। छुट्टियों में भी बच्चे के भीतर स्कूल के होने का अहसास बना रहे। लेकिन अगर स्कूल नहीं होता तो शायद बहुत सारी चीज़ों के देखने, करने, सीखने का तरीका बिल्कुल अलग होता और शायद ज़्यादा व्यावहारिक भी। ऐसे में बहुत सारी चीज़ें लिखित रूप में स्थानांतरित न होकर अनुभवों के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होतीं।
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Answer:
agar School Na hote to padhai Na hoti aur ham bade afsar nahin banpatte hamara jeevan safal Na Ho pata School Na hota to hamein shiksha prapt nahi hoti