जो जीवन-सुमन चढ़ा जननी के चरणों में,
सौ-सौ नंदन भी कब उसकी समता करते?
यमुना की लहरें नमन उसी को करती हैं,
गंगा की धारा उसका तर्पण करती है।
मधुऋतु भी उसके स्वागत में नतमस्तक हो
गर्वित आँखों से आँसू अर्पण करती है।
तरुणाई के लोहू से सिंचित जो धरती,
सौ-सौ मधुवन भी कब उसकी समता करते?
प्राची के अंबर में अरुणोदय की लाली,
हररोज़ सवेरे उसकी याद दिला जाती।
वह नव्ययौवना पाटल-कुसुमों की क्यारी,
उस बलिदानी के शोणित से लाली पाती।
जो गले लगा लेता हँसकर अंगारों को,
सौ-सौ आलिंगन कब उसकी समता करते? in panktiyo ka saransh apne sabdo me likhe.
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