निम्िलिखित में से क्रकसी एक विषय पर 80 से 100 शब्र्दों मेंअिुच्छेर्द लिखिए।
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क) शहरों में बढ़ता प्रदर्ूण
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क) शहरों में बढ़ता प्रदर्ूण
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Answer:
हरे-भरे, नम-शीतल जंगलों का स्थान आज गरम, पथरीली कंक्रीट के जंगलों यानी शहरों ने ले लिया है। बहुमंजिला इमारतों, सड़कों, कल-कारखानों के मकड़-जाल में फँसा है, आज शहर का आदमी ! शहरों में दिनोंदिन बढ़ती आबादी आग में घी का काम कर रही है। न पीने को पर्याप्त स्वच्छ जल है, न साँस लेने को शुद्ध हवा, न ही रात को चैन की नींद। शहर का सारा कूड़ा-करकट या तो ज़मीन पर बिखरा रहता है या उसे पानी में बहा दिया जाता है। वाहनों से निरंतर हवा में फैलता विषैला-धुआँ और कल-कारखानों का हानिकारक अवशेष, यातायात, भीड़ और मशीनों का शोर-इन सबने भूमि, वायु, जल तो प्रदूषित किए ही हैं, साथ ही एक और प्रदूषण को भी जन्म दिया है-ध्वनि-प्रदूषण। इन सबका हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। दूषित जल से पीलिया, आंत्र-शोध, टाइफाइड जैसे पेट के रोग, वायु-प्रदूषण से दमा जैसे श्वास के रोग, ध्वनि-प्रदूषण से बहरापन, सिरदर्द, तनाव जैसे मानसिक रोग बढ़ रहे हैं। शहर का शायद ही कोई व्यक्ति स्वयं को पूर्ण रूप से स्वस्थ अनुभव करता हो। कहते हैं न 'जान है तो जहान है।' शहरों का यह ऐश्वर्यपूर्ण जीवन किस काम का, यदि हमारा तनमन ही बीमार हो? बाग-बगीचे बनाकर, हरित भूमि छोड़ने का प्रावधान रखकर 'सी.एन.जी.' का प्रयोग करके सरकार शहरा। प्रदूषण को कम करने का प्रयास तो करती है, किंतु यह पर्याप्त नहीं। हर शहरी को अधिक जागरूक बनकर अपना उत्तरदायित्व समझना होगा। इसलिए यहाँ-वहाँ कूड़ा न फेंकें, ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाएँ, वाहनों की समय-समय पर प्रदूषण-जाँच करवाए, प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करें, हॉर्न लाउडस्पीकरों का शोर कम करें-ये सब उपाय अपनाकर प्रदूषण पर कुछ सीमा तक नियंत्रण पाया जा सकता है।