हिमालय की आत्मकथा लिखो
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Himalaya ki aatmakatha:
बड़ी-बड़ी मशीनें मेरी रूह पर निरंतर और घंटों चल रही हैं। मुझे खोदा जा रहा है ताकि उनका सफर आसान हो। मुझसे मिट्टी और पत्थर खरोंचे जा रहे हैं। जब मानव का दिल चाहता है वो एक विस्फोट करता है और मुझसे मरे शरीर का एक हिस्सा ले लेता है। जो काम का नहीं, उसे फिर मेरे शरीर पर ही डाल देता है और वृक्ष रूपी मेरे शरीर के बाल भी इस मलबे में दफन हो जाते हैं। वो जब मुझे विकास के नाम पर बलि चढ़ाते हैं, मेरे प्रवाह को रोक बांध बनाते हैं तब तक तो ठीक पर जब वो मेरी और उनकी सांसों के लिए जरूरी पेड़ों को काटते हैं तो बहुत दुख होता है। मैं अभागा रोता हूं तो वो समझते हैं कि बाढ़ आई है। मेरे शरीर के किसी हिस्से में धूप से जलन होती है तो वो समझते हैं, वनाग्नि है। मैं मानव हस्तक्षेप के कारण दर्द से दरकता हूं तो उसे भूस्खलन नाम देकर प्रकृति को कोसते हैं। हां, मैं पहाड़ हूं और बहुत उदास हूं। मुझे जिस तरह से प्रकृति से अलग किया जा रहा है तो मैं दर्द से दरक रहा हूं और मेरे आंसुओं के सैलाब से बर्फ पिघल रही है। जो कुछ भी हो रहा है, उससे यही लगता है कि मेरे सब अंग गल रहे हैं और मैं बेकार होता जा रहा हूं। उपेक्षित, उत्पीड़ित और अपमानित-सा महसूस कर रहा हूं।
hope it will helpp...........✌✌
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please mark as brainliest