आपके मित्र विद्यालय में एक नाटक कर रहे हैं। बीच में घबराकर वे अपना संवाद भूल जाते हैं।फिर नाटक को संभालने के लिए आपने जो कुछ किया उसे बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखें।
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आपके मित्र विद्यालय में एक नाटक कर रहे हैं। बीच में घबराकर वे अपना संवाद भूल जाते हैं।फिर नाटक को संभालने के लिए आपने जो कुछ किया उसे बताते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखें।
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Explanation:
कोई एक सौ पचासी बरस पहले की बात हैं। सन् 1829 की। कोलकाता के शोभाबाजार नाम की एक जगह में एक पाठशाला की, एक स्कूल की स्थापना हुई थी। यह स्कूल बहुत विशिष्ट था। इसकी विशिष्टता आज एक विशेष व्यक्ति से ही सुनें हम। विनोबा इस स्कूल में 21 जून, सन् 1963 में गए थे। उन्होंने यहां शिक्षा को लेकर कुछ सुंदर बातचीत की थी। उसके कुछ हिस्से हम आज यहां दुहरा लें और फिर आगे की बातचीत इसी किस्से से बढ़ सकेगी।
विनोबा कहते हैं कि इस स्कूल से कई महान विद्यार्थी निकले हैं। इनमें पहला स्थान शायद रवींद्रनाथ का है। उनकी स्मृति में इस स्कूल में एक शिलापट्ट भी लगाया गया है। स्कूल इस पट्ट में बहुत गौरव से बताता है कि यहां रवींद्रनाथ पढ़ते थे। यह बात अलग है कि उस समय रवींद्रनाथ को भी मालूम नहीं था कि वे ही ‘रवींद्रनाथ’ हैं। और न स्कूल वालों को, उनके संचालकों को मालूम था कि वे आगे चल कर ‘रवींद्रनाथ’ होंगे।
यह स्कूल गुरुदेव का आदरपूर्वक स्मरण करता है। लेकिन गुरुदेव भी उस स्कूल का वैसे ही आदर के साथ स्मरण करते हों इसका कोई ठीक प्रमाण मिलता नहीं। हां, एक जगह उन्होंने यह जरूर लिखा है कि, “मैं पाठशाला के कारावास से मुक्त हुआ, स्कूल छोड़ कर चला गया।” यानी इस स्कूल में उनका मन लगा नहीं। चित्त नहीं लगा। पर स्कूल वालों ने तो अपना चित्त उन पर लगा ही दिया था।