लेटी नीली छायाएँ
कृश रवि किरणों में गुंफित,
दुरारोह भातीं ढालें,
निश्चल तरंग-सी स्तंभित !
स्वर्ण-भाल गिरी सर्वप्रथम
करती ऊषा अभिनंदन,
साँझ यहीं सोती छिप
निर्जन में कर संध्यावंदन !
please give meaning of this poem
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लेटी नीली छायाएँ
कृश रवि किरणों में गुंफित,
दुरारोह भातीं ढालें,
निश्चल तरंग-सी स्तंभित !
स्वर्ण-भाल गिरी सर्वप्रथम
करती ऊषा अभिनंदन,
साँझ यहीं सोती छिप
निर्जन में कर संध्यावंदन !
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Answer:
dxx
Explanation:
लेटी नीली छायाएँ
कृश रवि किरणों में गुंफित,
दुरारोह भातीं ढालें,
निश्चल तरंग-सी स्तंभित !
स्वर्ण-भाल गिरी सर्वप्रथम
करती ऊषा अभिनंदन,
साँझ यहीं सोती छिप
निर्जन में कर संध्यावंदन !
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