a poem on dance in hindi
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कभी-कभी कहता है मन मयूरा
थिरकती रहूँ मैं एक ताल पर
अपनी आखिरी सांस तक।
क्योंकि, मैं चाहती हूँ
सदा के लिए खो जाना
और इतना डूब जाना
कि ये बाहरी दुनिया की घुटन
मेरी साँसों को छू भी ना पाए।
मैं चाहती हूँ
उस दुनिया में पहुँच जाना
जहाँ मेरी मुद्राएँ
रचती है मेरा संसार
और जहाँ थिरकते क़दमों से
होती हुई मुस्कुराहट
बस जाती है मेरे होठों पर
और कराती है मुझे
पूर्णता का अहसास।
जहाँ आज़ादी का स्पर्श
भर देता है रोम-रोम को
अनोखे आनंद और उल्लास से
बिन पंखों के भी होती है जहाँ उड़ान
अदम्य उत्साह और विश्वास से।
नृत्य अहसास है
बहती हुई नदी से उगते हुए सूरज का
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
चहुँ ओर से
हवाओं का स्पर्श पाने वाली
आत्मा के उत्कर्ष का।
जब थिरकते हैं कदम
तो मेरे संग झूमते हैं
फूल, पत्तियाँ और बहारें भी
मेरी खुशियों के गवाह बनते हैं
पर्वत, चाँद और सितारे भी।
लगता है जैसे
सारी वसुधा हो गयी हो
नृत्यमय!
प्रत्येक कण, क्षण और जीवन
झूम रहा है कुछ ऐसे
कि नहीं पता अब मुझे
क्या होता है भय।
एक जलती हुई वायलिन के साथ मुझे अपनी सुंदरता में नृत्य करें
मुझे आतंक के माध्यम से नृत्य करें 'मैं सुरक्षित रूप से इकट्ठा हूं
मुझे जैतून की शाखा की तरह उठाओ और मेरा घर का कबूतर बनो
प्यार का अंत तक मेरे साथ नाचो
मुझे प्यार के अंत में नृत्य करो