देवदूत वहाँ से चला गया। महापुरुष की नींद खुली। कुछ समय बाद उसने दूसरा स्वप्न देखा। उस स्वण भी उसने देवदूत को कुछ लिखते हुए देखा। महापुरुष ने कहा, "मित्र! आप क्या कर रहे हैं?" देवदूत कहा, "ईश्वर की आज्ञा से उस सूची में संशोधन कर रहा हूँ।" ने आश्चर्य से देखा कि उसका नाम ईश्वर के प्रिय भक्तों में सबसे ऊपर है। महापुरुष ने चकित होकर कहा, महापुरुष ने कहा, "क्या मैं उस सूची को देख सकता हूँ?" देवदूत ने उसके हाथ में पुस्तक दे दी। महापुरुष "आपने मेरा नाम सबसे ऊपर लिखा। मुझे लोकसेवा के कार्यों से अवकाश ही नहीं मिलता कि माला लेकर भगवान का भजन करूँ।" देवदूत ने कहा, "भगवान उसी को सर्वश्रेष्ठ भक्त मानते हैं जो सबमें ईश्वर को व्याप्त मानकर उसकी सेवा करता है। तू मनुष्य में देवत्व मानकर उसकी उपासना करता है, यही ईश्वर की उपासना है। पत्थर में देवत्व के वास की अपेक्षा जीवित मनुष्य में देवत्व भावना रखना उचित है। हे महापुरुष! आप वास्तव में ईश्वर भक्त हैं, जो चेतन में ईश्वर को ढूँढ़ते हैं। प्राण तो जीवित शरीर में रहते हैं मृत शरीर में नहीं। जो केवल एकांत में बैठकर भगवान को पुकारते हैं ईश्वर उनसे दूर भागता है।" 1. दूसरे स्वप्न में महापुरुष ने क्या देखा? 2. महापुरुष चकित क्यों हुआ? 3, भगवान किसे सर्वश्रेष्ठ मानते हैं? 4. 'महापुरुष' समस्त पद का विग्रह करके उसका भेद लिखिए। 5. इस गद्यांश को उचित शीर्षक दीजिए।
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Answer:
महान ऐसा पुरुष
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