apne mataji ke yaad mai patra likhe
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माँ तेरे आँचल में छिपकर मेरे सपने सजाना
आत्मा को सुकून देने वाला तेरा वो स्पर्श
कड़कती धूप में माँ तेरे हाथों की ठंडक
तुझको छूकर आती हवा में, तपती धूप में चैन
तेरा अपने हाथों से खाने का निवाला खिलान ा
तेरी ममता भरी डाँट के बाद ढेर सारा दुलार
रात की गहराई में तेरी ममता की रोशनी
दर्द में भी चाँद की चाँदनी सी तेरी मुस्कुराह ट….
कुछ दिन की दूरी भी बेटियाँ सह नहीं पातीं, माँ से दूर जाने का ख्याल भी दिल को खाली कर जाता है, आपका जाना भी कुछ ऐसा है माँ जैसे मेरी साँसें मुझसे कहीं दूर होती जा रही हैं। सूरज की रोशनी भी इन आँखों को भाती नहीं अब, चाँद में तेरा चेहरा रहता है, बस ये सितारे ही होते हैं मेरे साथ जो रात को तेरी रात बनकर मुझे अपनी चादर ओढा देते हैं।
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सब बहुत याद आता है माँ। तेरी बातें, हमारी वो छोटी-छोटी सी लड़ाइयाँ, शाम को सुकून भरे वो दो पल, रात को परियों की कहानियाँ सब बहुत याद आती हैं। वो दो पल की नाराज़गी की बेचैनी जो तेरी आँखों में झलकती थी अब वो जैसे मेरी सूनी आँखों का काजल सी बन गई है।
तुमसे दूर होकर मैंने जाना क्यों माँ अपनी बेटियों को इतना प्यार करती है, क्यों बेटी की आँखों में अपनी खुशियाँ देखती है, क्यों वो उसे अपना सारा प्यार लुटा देती है, क्यों बेचैनियाँ उसे बेटी के जन्म से ही मिल जाती हैं क्योंकि माँ जानती है जो दुनिया उसे दी गई वो शायद फिर कहीं नहीं मिलेगी। गुड्डे-गुडि़यों का वो खेल फिर कहीं खेलने नहीं दिया जाएगा, वो बच्चों सी जिद फिर कहीं पूरी नहीं की जाएगी।
मीठापुर, बदरपुर
नई दिल्ली-४४
२४ ओकट 2018
पिता जी,
मैं यहाँ ठीक हूँ। आशा करती हूं आप भी ठीक होंगे । आपसे बात ना होने के कारण मैं थोड़ा चिन्ति थी । माँ की बहुत याद आती है । कार्य छेत्र मैं व्यस्त होने के कारण वाहा आ नही सकती । माँ का ध्यान रखना और भाई को बहुत सारा प्यार देना ।
आपकी पुत्री
सलीका