ashok ke dhamma ke baare me bataye
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अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक विकास के लिए जिन आचारों और नियमों का पालन करने के लिए कहा, उन्हें ही अभिलेखों में "धम्म" कहा गया। संसार में अशोक की प्रसिद्धि का कारण उसकी विजयें नहीं बल्कि उसका "धम्म" है। धम्म शब्द संस्कृत भाषा के "धर्म" शब्द का प्राकृत भाषा में रूपान्तर है। अशोक ने अपने 12वें शिलालेख में धम्म की सारवृद्धि पर जोर दिया है। सारवृद्धि से तात्पर्य है कि अपने धर्म की उन्नति के साथ साथ अन्य धर्मों की उन्नति की कामना करना। अशोक के दूसरे व सातवें स्तम्भ अभिलेख में धम्म शब्द की व्याख्या मिलती है। इसके अनुसार, साधुता, बहुकल्याण कार्य करना, पाप रहित होना, मृदु बोलना, दूसरों के प्रति व्यवहार में मधुरता, दया, दान व स्वच्छता ही धम्म है। प्राणियों का वध न करना, जीव हिंसा न करना, बड़ो की आज्ञा मानना, गुरुजनों के प्रति आदर एवं सभी उचित व्यवहार भी धम्म के अन्तर्गत आते हैं। अशोक ने धम्म के मार्ग में बाधक पाप की भी व्याख्या की है--चण्डता, निष्ठुरता, क्रोध और ईर्ष्या पाप के लक्षण हैं। अशोक के धम्म में निरन्तर आत्म परीक्षण पर भी बल दिया गया है। अशोक के धम्म का उद्देश्य "स्वर्ग" प्राप्त करना था। भाब्रू (वैराट) लघु शिलालेख में भी अशोक के धम्म का उल्लेख मिलता है। इसमें अशोक ने त्रिसंघ में विश्वास प्रकट किया है तथा बौद्ध भिक्षुओं को बौद्ध पुस्तकें पड़ने का निर्देश दिया है।