अकेलेपन के साथी पर सार लिखें
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अकेलेपन के साथी पर सार लिखें
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अकेलापन” कहते है अपने आप में निऱाशा भाव का सूचक हैं। पर अगर इतिहास को गौर से देखा जाए तो ज्यादातर सफलतम व्यक्ति कहीं न कहीं इसी अकेलेपन के साथ आगे बढ़े। मगर तब, उन्होंने इस अकेलेपन को निराशावादी होकर नहीं आशावादी नजरिये से ज़िया और अपने लक्ष्य को अंतत: पा ही लिय़ा। फिर चाहे वो गांधी जी हो, रविन्द्रनाथ टैगोर, प्रेमचन्द, मदर टेरेसा और ऐसे अनगिनत नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं। ये सभी महानुभव समाज व परिवार के साथ रहते हुए भी अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अकेले ही प्रयत्नशील रहें। अपने लक्ष्य या सोच को देश व समाज के समक्ष रखने के लिए इन्हें सैकड़ों परेशानियों को झेलना पड़ा पर ये डटे रहे। इनकी सोच इनके कार्यों को समाज ने पहले सिरे से नकार दिया और भर्त्सना भी की पर इन सभी में एक बात कॉमन थी और वो थी आत्मविश्वास। इस आत्मविश्वास की बदौलत ही इन्होंने अपने अकेलेपन को निराशावादी होकर नहीं आशावादी सोच के साथ जिंया और सफलता प्राप्त की। यहां कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि जरूरी नहीं अकेलापन हमेशा आपको निरशा में घेर लें या अकेलापन निराशा या डिप्रेशन का सूचक हैं। दरअसल आज हमारी जिंदगी इतनी ऊहापोह से जूझ रही हैं कि हम अपने अन्दर के अकेलेपन को पॉजिटिव वे में नहीं ले पा रहे हैं, और लेंगे भी कैसे? हम इस ख्यालभर से बैचेन हो जाते है कि आज अकेले रहना है या मेरी सारी जिंदगी कहीं अकेले तो नहीं कटेगी?
कहते है जब आप दुनिया से दूर होते है तो खुद के बेहद करीब होते हैं तब आप अपने सबसे अच्छे दोस्त होते है या यूं कहें आत्मविशलेषक बन जाते हैं। अकेलेपन के भाव को गर हम एक ऐसे पड़ाव के रूप में देखे कि अब मुझे खुद से दोस्ती करनी है्, खुद को कसौटी पर कसना हैं अपना आलोचक और प्रशंसक मुझे ही बनना है तो फिर ये अकेलापन आपको डरायेगा नहीं बल्कि एक गजब की ताकत एक आत्मविश्वास देगा क्योंकि व्यक्ति परिवार, प्यार, समाज से तो झूठ बोल सकता हैं मगर खुद से नहीं और खुद से ईमानदारी का अंकुर तब फुटता है जब आप अकेले होते है क्योंकि उस पल आप खुद के साथ होते है। साथ ही करीब होते हैं उन सपनों और लक्ष्यों के जो कभी परिस्थितिवश या किसी मोह के स्वरूप या निश्चय में कमी के फलस्वरूप पूरा नहीं कर पाते। ऐसे में कभी, कहीं ऐसा मुकाम आता है जहां आप खुद को अकेला पाते है तो निराश मत होइए। बस उस अकेलेपन को गहराई से महसूस कीजिए । खुद के सपनों और केवल खुद के वजूद को ढूंढिए तो महसूस करियेगा कैसी एक आग सी जलती है आपके अन्दर खुद को पाने की, एक मुकाम दिलाने की। तब ये आग एक लौ की तरह आपके आगे अपने जीवन का लक्ष्य रख देगी। मगर ये तभी संभव हो पाएगा जब आपकी सोच सकारात्मक होगी जब आप किसी एक पल, एक लम्हा दिल से सिर्फ खुद के साथ अकेला रहना चाहेंगे इस दौरान जो खुद को बदलने का सकारात्मक भाव या मुकाम हासिल करने की ललक उठेगी वो आपको अकेले पन को इंजॉय करना सिखा देगी। वैसे भी जीवन में गर कुछ पाना है या फिर बदलना है तो अकेला चलना ही होगा। सफलता की पहली शर्त ही अकेलापन है मगर इस अकेलेपन में आपके साथ केवल आपके सपने, सच्ची कोशिशें और बहुत सा आत्मविश्वास होना चाहिए। तभी रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी लिखा है एकला चलो ………………एकला चलो……………………एकला चलो रे…………….इस अकेलेपन को उन्होंने सकारात्मक सोच के साथ जिया और जीना सिखाया हैं। वैसे भी कहते है ये व्यक्ति की सोच पर है कि वो पानी से भरे आधे गिलास को आधा खाली देखे या आधा भरा. मतलब आशा और निऱाशा आपकी सोच आपके नजरिये पर निर्भर हैं। आप आशावादी नजरिया अपनाते है तो पानी से भरा गिलास आपको आधा ही सही भरा लगेगा और निराशावादी है तो आधा भरा गिलास आधा खाली ही नज़र आएगा। ठीक ऐसे ही अकेलापन तभी आपको चुभेगा जब आप उसे निराशावादी होकर देखेंगे गर आशावादी हो जाऐंगे तो ये ही अकेलापन बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि तब आप खुद के बेहद करीब होंगे। तब आप अपने सपनों , अपनों की उम्मीदों को पूरा करने के रास्तों को भलीभांति देख सकेंगें।