एक अपठित गद्यांश लिखिए (easy and simple)in hindi
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सिंधु और ब्रह्मपुत्र- ये दो ऐसे नाम हैं जिनके सुनते ही रावी, सतलुज, व्यास, चनाब, झेलम, काबुल (कुभा), कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं। वास्तव में सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं हैं। दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक-एक बूँद न जाने कब से इकट्ठा हो-होकर इन दो महानदों के रूप में समुद्र की ओर प्रवाहित होती रही है। कितना सौभाग्यशाली है वह समुद्र जिसे पर्वतराज हिमालय की इन दो बेटियों का हाथ पकड़ने का श्रेय मिला!
जिन्होंने मैदानों में ही इन नदियों को देखा होगा, उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं। माँ-बाप की गोद में नंग-धड़ंग होकर खेलनेवाली इन बालिकाओं का रूप पहाड़ी आदमियों के लिए आकर्षक भले न हो, लेकिन मुझे तो ऐसा लुभावना प्रतीत हुआ वह रूप कि हिमालय को ससुर दामाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।
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शीर्षक समाज और विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो समाज से काटकर अलग की जा सके। समाज दरिद्र है तो विश्वविद्यालय भी दरिद्र होंगे, समाज कदाचारी है, तो विश्वविद्यालय भी कदाचारी होंगे और सvvमाज में अगर लोग आगे बढ़ने के लिए गलत रास्ते अपनाते हैं तो विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र भी सही रास्तों को छोड़कर गलत रास्तों पर अवश्य चलेंगे।विश्वविद्यालयों और कॉलेजो में भी अशांति फैली है, जो भ्रष्टाचार फैला है, वह सब का सब समाज में फैलकर यहाँ तक पहुँचा है। समाज में जब सही रास्तों का आदर था, ऊँचे मूल्यों की कद्र थी, तब कॉलेजों में भी शिक्षक और छात्र गलत रास्तो पर कदम रखने से घबराते थे।लेकिन अब समाज ने विशेषतः राजनीति ने, ऊँचे मूल्यों की अवहेलना कर दी और अधिकतर लोगों के लिए गलत रास्ते ही सही बन गए तो फिर उसका प्रभाव कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर भी पड़ना अनिवार्य हो गया। छात्रों की अनुशासनहीनता की जाँच करनेवाले लोग परिश्रम तो खूब करते हैं, किंतु असली बात बोलने से घबराते हैं।सोचने की बात यह है कि पहले के छात्र सुसंयत क्यों थे? अब ये उच्छृंखल क्यों हो रहे हैं ? किसने किसको खराब किया है? चाँद ने सितारों को बिगाड़ा है या सितारों ने मिलकर चाँद को खराब कर दिया ?
Hope it is helpful
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