देश के लिए शहीद होने वाले किन्हीं दो देशभक्तों के बलिदान के विश्व में लिखें
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15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था, इसलिए हर साल पूरा देश इस आजादी का जश्न धूमधाम से मनाता है। स्कूल-कॉलेजों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें बच्चे सज-धजकर जाते हैं और प्रस्तुतियां भी देते हैं। देश को आजाद कराने वालों के नाम पर अधिकतर लोगों के जहन में चुनिंदा शहीदों के नाम ही आते हैं। शैक्षणिक किताबों का हिस्सा होने के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, क्रांतिकारी भगत सिंह और नेताजी सुभाषचंद्र बोस से तो अमूमन सबका परिचय हो ही जाता है, लेकिन इसके आगे हम उन वीर जवानों को याद करने की कोशिश भी नहीं करते, जिन्होंने आजादी के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया था। आइए जानते हैं भारत माता के ऐसे 10 सपूतों के बारे में, जिनके जिक्र के बिना आजादी की कहानी अधूरी है।उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में भूमिहार ब्राह्मण परिवार में 9 अप्रैल 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन घूमने-फिरने के शौकीन थे। राहुल को हिंदी ट्रेवलॉग (यात्रा वृतांत) का जनक भी कहा जाता है। पूरे देश का भ्रमण करने वाले राहुल ने देखा कि एक तरफ देशवासी भूख और गरीबी से मर रहे हैं तो दूसरी तरफ अंग्रेज देश को लूटने में लगे हुए हैं। इससे व्यथित होकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लिखना और भाषण देना शुरू कर दिया। उनके इस कदम से अंग्रेज बौखला गए और उन्हें 3 साल के लिए जेल में बंद कर दिया। जेल से छूटने के बाद भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लिखना जारी रखा। देश के आजाद होने के बाद विशेष अनुरोध पर वे श्रीलंका यूनिवर्सिटी में पढ़ाने चले गए। यहां उनकी तबीयत काफी खराब हो गई। उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता था। 14 अप्रैल 1963 को पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में उन्होंने आखिरी सांस ली। 1963 में ही भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा।सूक्कर सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में पेसुमल कालानी और जेठा बाई के घर 23 मार्च 1923 को हेमू कालानी का जन्म हुआ। अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के सुर हेमू के बचपन में ही दिखाई देने लगे थे। हेमू ने विदेशियों के सामान का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। वे अपने दोस्तों के साथ गांव-गांव घूमकर लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित करते थे। 1942 आते-आते महज 19 साल की उम्र में हेमू महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों का सामान ले जा रही ट्रेन का लूटने की योजना बनाई, लेकिन ट्रेन लूटने के लिए जरूरी हथियारों का अभाव होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया। हेमू को 21 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
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