अब भी कुछ लोगों के दिल में, नफरत अधिक, प्यार है कम।
हम जब होंगे बड़े घृणा का नाम मिटाकर लेंगे दम। हिंसा के विषमय प्रवाह में, कब तक और बहेगा देश! जब हम होंगे बड़े देखना, नहीं रहेगा यह परिवेश अष्टाचार जमाखोरी की आदत बहुत पुरानी है, ये कुरीतियाँ मिटा हमें तो नई चेतना लानी है। एक घरौदे जैसा आखिर कितना और दहेगा देश, जब हम होंगे बड़े देखना, ऐसा नहीं रहेगा देश इसकी बागडोर हाथों में जरा हमारे आने दो, थोड़ा-सा बसा पॉव हमारा, जीवन में टिक जाने दो। हम खाते हैं शपथ, दुर्दशा कोई नहीं सहेगा देश, घोर अभावों की ज्वाला में, कल से नहीं दहेगा देश ।
प्रश्न 4.
पूरी काव्य पंक्तियों में कवि क्या विश्वास दिलाना चाहता है? [1]
प्रश्न 5.
हिंसा के विषमय प्रवाह से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिये। [1]
प्रश्न 6. बच्चे किन कुरीतियों को मिटाने का संकल्प व्यक्त करते हैं?
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Answer:
nhi pata yaar plzz koi bata do isse