Hindi Speech on Biswa Santi main Bharat ki Bhumika with introduction
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भारत का शांति और देशों के शांतिमय सहअस्तित्व में विश्वास है। उसका प्राचीन भूतकाल इस बात का साक्षी है कि उसने सदैव प्रथम प्रधानता भौतिक वस्तुओं को ना देकर मानव को दी। उसकी स्वार्थरहितता¸ बलिदान और त्याग¸ मानववाद और विश्वास की परंपराएं हैं। वह शांति के खोजकों¸ धार्मिक पुरुषों और उन लोगों का जो मानव जाति को प्रलोभन¸ लालच और कुबेर की पूजा के पंजों से मुक्त कराना चाहते थे¸ निवास स्थान था। हमारे भूतकाल कि ये परंपराएं आज वर्तमान तक कुछ हद तक जिंदा है और भारत समस्त मानव जाति के लिए शांति दूत होने का दावा कर सकता है। उल्लेखनीय बात यह है कि भारत ने शायद ही कभी आक्रमण की लड़ाइयां लड़ी हों। निसंदेह भारत के पास शक्तिशाली सशस्त्र सेनाएं थी किंतु उनका कार्य मातृभूमि की रक्षा तक ही सीमित था। भारत ने तत्परता से दूसरे लोगों की आजादी का आदर किया।
आधुनिक युग में भारत ने विश्व को अपूर्व योगदान दिया है। यदि भारत के प्रयास ना रहे होते तो तृतीय विश्वयुद्ध हो गया होता। स्वतंत्रता प्राप्त करने से पूर्व भारत के नेताओं ने शांति एवं राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक संबंधों की वकालत की। उसने लोगों के पक्ष का समर्थन किया जोकी जाती-रंग की नीति अपनाने वाले¸ आक्रमणकारी एवं साम्राज्यवादियों के षड्यंत्रों के शिकार हो गए थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत के प्रधानमंत्री उन सम्मेलनों में भाग लेते रहे हैं जिनको तृतीय विश्वयुद्ध को टालने के तरीकों की खोज करने¸ सभी देशों के लिए न्याय प्राप्त करने और शांति को मजबूत और टिकाऊ ढांचे का निर्माण करने हेतु बुलाया गया। उसने चीन के साथ शांति के पांच सिद्धांतों जिनको पंचशील के नाम से पुकारा जाता है¸ का प्रतिपादन किया। उसने 1947 में एशियन रिलेशंस काफ्रेंस की मेजबानी की। उसने बांडुग में एफ्रो एशियन रिलेशन कॉन्फ्रेंस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस सम्मेलन द्वारा जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया वे शांति के सिद्धांत थे। उसने चीन के साथ अपनी सीमा विवाद को शांतिमय तरीके से हल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने कई बार पाकिस्तान के साथ युद्ध संधि हस्ताक्षरित करने की पेशकश की और भारतीय उपमहाद्वीप में शांति आधारशिला को दृढ़ बनाने हेतु उसके साथ ताशकंद समझौते और बाद में शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए। उसने नेपाल के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए प्रयास किया है और उस देश के विकास के लिए उसके साथ कुछ सहयोग किया है। उसके साथ सभी विवादों को शांति मय तरीकों से सुलझाया गया है। उसने श्रीलंका के साथ उस देश में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकताविहीन लोगों के प्रश्न पर समझौता किया। उसने अपनी सेनाओं को वहां हो रही जातीय हिंसा को समाप्त करने के लिए भेजा और जब वहां के कुछ वर्गों ने उनकी भूमि पर भारतीय सेना की मौजूदगी के प्रति नाराजगी प्रकट की तो भारत ने अपने सेनाओं को वापस बुला लिया। बर्मा के साथ शायद ही कोई विवाद हुआ हो या सामान्य संबंधों में गड़बड़ी हुई हो। इस प्रकार अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों चाहे वे बड़े देश हों या छोटे उसने शांति¸ समन्वय एवं सहयोग एवं सद्भावना का ना की संघर्ष¸ अविश्वास और संदेह का रास्ता अपनाया है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विस्तृत क्षेत्र में भारत ने शांति निर्माता की भूमिका निभाई है। गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर उसने दोनों शक्ति गुटों के बीच पुल बनाने का प्रयास किया और यह कोशिश की कि महाशक्तियों के बीच समझौते की भावना प्रबल हो। उसी की पहल एवं रूचि के कारण आज गुटनिरपेक्ष आंदोलन एक बड़ी शांति की शक्ति बनकर सामने आया है और 100 से अधिक राष्ट्र गुटनिरपेक्ष भ्रातृत्व के सदस्य बन चुके हैं। गुट निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में भारत ने शांति के ढांचे को मजबूत किया है। दुनिया के किसी भी भाग में अन्याय और शोषण की घटनाओं के प्रति निर्भय रूख अपना कर उसने अधिकांश देशों का सम्मान अर्जित किया है। गुट निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में उसने किसी भी महाशक्ति के द्वारा किए गए आक्रमण युद्धों की निंदा की। इस प्रकार उसने रूस द्वारा हंगरी और चेकोस्लोवाकिया के ऊपर किए गए हमले की¸ और इंडो-चीन में अमरीकी हस्तक्षेप की¸ और अफगानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप की और पनामा में अमरीकी हस्तक्षेप की निंदा की।
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