उच्च महत्वकांशा की पूर्ती के लिए बच्चों पर मानसिक दबाव उनके विकास में बाधक है। i want debate(विपक्ष) points on the above topic .....please send me as soon as possible
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मेरे जीवन की महत्त्वकांक्षा न तो धन में खेलने की है न शक्ति संचय की अथवा न कोई उच्च पद पाकर समाज में बड़ी हैसियत बनाने की है । मैं बड़े शालीन और संकोची स्वभाव क्य युवक हूँ । मेरी महत्त्वकांक्षा बडी सीधी-सीदी है । मैं निर्धनों और दलितों और जरूरतमन्द लोगों की सेवा में जीवन बिताना चाहता हूँ ।
अपनी किशोरावस्था से ही मुझे ऐसे लोगों की सहायता में बड़ा मजा आता है, जो किसी प्रकार के संकट में हों । अपने पड़ोसियों के कष्ट और रूदन को देख अनेक बार मैं अपना सारा काम-काज छोड़कर उनकी सहायता में जुट जाता हूँ और उनके दू:ख दूर करने में घंटों बिता देता हूँ ।
किसी व्यक्ति को कष्ट में देखकर मेरा हृदय रुदन करने लगता है । जिन्हें मेरी सहायता से कोई लाभ पहुंच सकता है मैं उनकी सहायता करने में मैं अपनी जान की बाजी तक लगा देता हूँ । अपनी सेवा और सहायता से केसी का उपकार करके मुझे बड़ा रक्त और सुख मिलता है । दूसरी क मदद करके मुड़ अपार मानसिक शांति मिलती है ।
कोई भी काम दबाव से जो जबरदस्ती से नहीं होता। खास करके तब जब वह काम आप को स्वयं करने का मन ना हो तब तक आपको कोई भी कोई काम नहीं करवा सकता जब तक इंसान खुद ना वो काम करना चाह रहा हो। बात बच्चों पर दबाव डालने की तो यह कार्य बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए क्योंकि हर बच्चा अपने आप में अलग होता है आप अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने बच्चों पर दबाव बिल्कुल भी नहीं डाल सकते।
हर बच्चे को अधिकार है जीवन में आगे बढ़ने का और अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने का।मगर कुछ माता-पिता अपने बच्चों को निर्णय नहीं लेने देते और सारा जीवन उन पर अपना अधिकार जमाते रहते हैं जो कि गलत है।
बच्चों पर ज्यादा दबाव डालने से वह समाज से दूर हो जाते हैं और धीरे धीरे धीरे वह अकेले रहना शुरू कर देते हैं और उनका यही अकेलापन एक दिन उन्हें क्रिमिनल बना देता है। इसलिए माता पिता को अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए उन पर दबाव बिल्कुल भी नहीं डालना चाहिए बल्कि उनको उनके द्वारा लिए गए निर्णय का साथ देना चाहिए ताकि वह जीवन के पथ पर हमेशा आगे बढ़ते रहे।