Kabir saakhi 10th class line by line explanation....... in hindi
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अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
बात करने की कला ऐसी होनी चाहिए जिससे सुनने वाला मोहित हो जाए। प्यार से बात करने से अपने मन को शांति तो मिलती ही है साथ में दूसरों को भी सुख का अनुभव होता है। आज के जमाने में भी कम्युनिकेशन का बहुत महत्व है। किसी भी क्षेत्र में तरक्की करने के लिए वाक्पटुता की अहम भूमिका होती है।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
पूरी दुनिया मौज मस्ती करने में मशगूल रहती है और सोचती है कि सब सुखी हैं। लेकिन सही मायने में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है।
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
जिस तरह से प्रेमी के बिरह के काटे हुए व्यक्ति पर किसी भी मंत्र या दवा का असर नहीं होता है, उसी तरह भगवान से बिछड़ जाने वाले जीने लायक नहीं रह जाते हैं; क्योंकि उनकी जिंदगी पागलों के जैसी हो जाती है।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
जो आपका आलोचक हो उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि संभव हो तो उसके लिए अपने पास ही रहने का समुचित प्रबंध कर देना चाहिए। क्योंकि जो आपकी आलोचना करता है वो बिना पानी और साबुने के आपके दुर्गुणों को दूर कर देता है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
लोगों में यदि प्रेम और भाईचारे का संदेश फूंकना हो तो उसके लिए आपको पहले अपने मोह माया और सांसारिक बंधन त्यागने होंगे। कबीर जैसे साधु के पथ पर चलने की योग्यता पाने के लिए यही सबसे बड़ी कसौटी है
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अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
बात करने की कला ऐसी होनी चाहिए जिससे सुनने वाला मोहित हो जाए। प्यार से बात करने से अपने मन को शांति तो मिलती ही है साथ में दूसरों को भी सुख का अनुभव होता है। आज के जमाने में भी कम्युनिकेशन का बहुत महत्व है। किसी भी क्षेत्र में तरक्की करने के लिए वाक्पटुता की अहम भूमिका होती है।
2. कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें।
3. जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।
4. सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
पूरी दुनिया मौज मस्ती करने में मशगूल रहती है और सोचती है कि सब सुखी हैं। लेकिन सही मायने में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है।
5. बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
जिस तरह से प्रेमी के बिरह के काटे हुए व्यक्ति पर किसी भी मंत्र या दवा का असर नहीं होता है, उसी तरह भगवान से बिछड़ जाने वाले जीने लायक नहीं रह जाते हैं; क्योंकि उनकी जिंदगी पागलों के जैसी हो जाती है।
6. निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
जो आपका आलोचक हो उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि संभव हो तो उसके लिए अपने पास ही रहने का समुचित प्रबंध कर देना चाहिए। क्योंकि जो आपकी आलोचना करता है वो बिना पानी और साबुने के आपके दुर्गुणों को दूर कर देता है।
7. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है।
8. हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
लोगों में यदि प्रेम और भाईचारे का संदेश फूंकना हो तो उसके लिए आपको पहले अपने मोह माया और सांसारिक बंधन त्यागने होंगे। कबीर जैसे साधु के पथ पर चलने की योग्यता पाने के लिए यही सबसे बड़ी कसौटी है।
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