कैसे बच्चे मां बाप पर बोझ बन जाते हैं
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दुनिया का हर इंसान खुद को एक बेहतर अभिभावक साबित करना चाहता है। अपनी जिंदगी की सारी ऊर्जा और समय बच्चों की परवरिश के साथ उनके कैरियर को संवारने में खर्च कर देता है। अपना दिन-रात एक कर वह अपने बच्चों को एक बेहतरीन इंसान बनाना चाहता है। पुरुष अपनी क्षमता के अनुसार नौकरी कर घर चलाने के लिए खर्च की व्यवस्था करता है तो महिला घर को सँभालने का काम करती हैं। कई बार पति-पत्नी दोनों नौकरी कर अपने बच्चों की परवरिश और उनकी जरूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटे दिखाई देते हैं। हैरत करने वाली तस्वीर तब सामने आती है, जब इनमें से कोई माँ-बाप बुढ़ापे में बीमारी की हालत में अकेले घर में जिंदगी काटते नजर आते हैं या फिर कोई बेटा बड़ी कम्पनी में नौकरी मिलने के बाद विदेश चला जाता है और अपने माँ-बाप के लिए 'ओल्ड एज होम' में रहने की व्यवस्था करा जाता है। विदेशों में ही नहीं, बल्कि देश के महानगरों के साथ ही लखनऊ जैसे मध्यम स्तरीय शहरों में भी यह प्रवृत्ति उभरती दिखाई दे रही है। यहाँ के अनाथालयों और ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्गों की कहानी समाज की चरमराती व्यवस्था की बानगी पेश करते दिखते हैं।
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Answer:
Explanation:
दुनिया का हर इंसान खुद को एक बेहतर अभिभावक साबित करना चाहता है। अपनी जिंदगी की सारी ऊर्जा और समय बच्चों की परवरिश के साथ उनके कैरियर को संवारने में खर्च कर देता है। अपना दिन-रात एक कर वह अपने बच्चों को एक बेहतरीन इंसान बनाना चाहता है। पुरुष अपनी क्षमता के अनुसार नौकरी कर घर चलाने के लिए खर्च की व्यवस्था करता है तो महिला घर को सँभालने का काम करती हैं। कई बार पति-पत्नी दोनों नौकरी कर अपने बच्चों की परवरिश और उनकी जरूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटे दिखाई देते हैं। हैरत करने वाली तस्वीर तब सामने आती है, जब इनमें से कोई माँ-बाप बुढ़ापे में बीमारी की हालत में अकेले घर में जिंदगी काटते नजर आते हैं या फिर कोई बेटा बड़ी कम्पनी में नौकरी मिलने के बाद विदेश चला जाता है और अपने माँ-बाप के लिए 'ओल्ड एज होम' में रहने की व्यवस्था करा जाता है। विदेशों में ही नहीं, बल्कि देश के महानगरों के साथ ही लखनऊ जैसे मध्यम स्तरीय शहरों में भी यह प्रवृत्ति उभरती दिखाई दे रही है। यहाँ के अनाथालयों और ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्गों की कहानी समाज की चरमराती व्यवस्था की बानगी पेश करते दिखते हैं।