अनु रूपम ,sachkram ,tribhuvan ram lakshmanno, pitaro samasik padani wygrah Kritiwa shamashsy namani likht Sanskrit mein bataen
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अनु रूपम ,sachkram ,tribhuvan ram lakshmanno, pitaro samasik padani wygrah Kritiwa shamashsy namani likht Sanskrit mein bataen
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Answer:
उप और आसन से मिलकर बनता है, उपासना शब्द। इसका अर्थ है समीप बैठना। ज्ञान को विकसित करने का एकमात्र तरीका यही है। आध्यात्मिक ज्ञान के लिए तो यह और भी अधिक आवश्यक है। केवल किताबों से समझ नहीं पैदा हो सकती, न सुनी-सुनाई बातें ही हमारे अंदर समझ विकसित कर सकती हैं। जिनके अंदर समझ है, उनसे निकटता ही हममें भी समझ की संभावना को पैदा कर सकती है। लेकिन केवल इतना भर पर्याप्त नहीं है। वह व्यक्ति जिसमें समझ है, साथ ही वह उस समझ को, उस ज्ञान को आपको भी देने को उत्सुक हो, तभी निकटता सार्थक होती है। तभी उपासना फलदायी हो सकती है। हमारे पूर्वजों से अधिक कौन हमारी उन्नति और हमारे ज्ञान-पथ पर आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हो सकता है? हमारे पितरों का हमारे ऊपर प्रेम होना स्वाभाविक ही है। पितृ-उपासना में जब हम अपने पूर्वजों के समीप बैठते हैं, तो न केवल उनके निकट होते हैं, बल्कि स्वयं उनके भीतर स्थित केंद्र के भी निकट पहुंचने लगते हैं।
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महाभारत के शांति पर्व में पितृ उपासना व श्राद्ध का वर्णन आता है। कथा है कि अत्रि मुनि ने श्राद्ध का उपदेश दिया था और महर्षि निमि ने इसका संपादन किया था, जिससे पितर तृप्त हो गए। शास्त्रों के अनुसार यद्यपि हमारे पूर्वज देह में नहीं हैं, फिर भी वे पितृ लोक में निवास करते हुए किसी-न-किसी तरह हमसे जुड़े हुए हैं और हम उनका ही विस्तार हैं। इसलिए उनकी हमसे अपेक्षाएं भी हैं और उनमें हमारी उन्नति की कामना भी है। श्राद्ध, यानी अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा से ओत-प्रोत होकर किया गया कर्म न केवल उन्हें तृप्ति देता है, बल्कि पितरों से हमारे जुड़ाव को और अधिक दृढ़ता प्रदान करता है। यही आत्मीय दृढ़ता उनके आशीर्वाद के रूप में हमारा पथ-प्रदर्शन करती है। परंपरा है कि पितृ पक्ष में अन्य सभी महत्वपूर्ण कार्यों को थोड़ा-सा विराम देकर अपने पूर्वजों के लिए समय निकाला जाता है और इन दिनों में पितर सर्वाधिक शक्तिशाली होते हैं। ऐसे में पितृ उपासना के लिए यह सबसे सही समय है। इस समय का भरपूर लाभ उठाएं और अपने पूर्वजों की श्रद्धा से उपासना करें।