[tex]hola \: guys[/tex]
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Article in about 500 words on Social Networking- Boon or Bane in Hindi
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वर्तमान समय मे जिस प्रकार से हमारी सोशल मीडिया की प्रयोगिता बढ़ चुकी है,उसे देखकर लगता है कि भारत डीजिटिकरण की ओर बढ़ तो रहा है लेकिन कही न कही हमे वास्तविकता से कोसो दूर एक सपनो की दुनिया मे ढकेल रहा है।
शायद से सोशल मीडिया हमारे जीवन मे एक ऐसा माध्यम बन चुका है जिससे हम अगर एक पल के लिए भी दूर जाने की कोशिश करते है तो ज़िन्दगी में खालीपन का एहसास होने लगता है।
आज जिसे देखिए आपको वो इंसान अपने फोन से चिपका हुआ मिलेगा,मतलब लोग इसके नशे में इतना धुत हो चुके है कि आजकल तो 'सेल्फी' लेने के चक्कर मे अपनी जान गंवा देतेे है।
वो इस बात से नदारद है कि किस प्रकार से इसका विष उनपर हावी हो रखा है कि वो सही गलत का फर्क भी नही कर पा रहे है।
जिस प्रकार से आज के समय मे हम कोई भी उपद्रवक़ या कोई भी साम्प्रदायिक दंगे केवल अपने एक 'फेसबुक पोस्ट' से फैला सकते है,इससे ये साफ जाहिर होता है कि आज सोशल मीडिया में 'सेंसरशिप' की कितनी आवश्यकता हो चुकी है।
बहरहाल,ये तो रही बात की किस प्रकार से सोशल मीडिया हमारे जीवन पर अपना कहर बरपा रहा है।
वही अगर हम दूसरी ओर देखे तो शायद ये इतना भी खराब नही है। आप खुद सोचिये की अगर आपको एक जरिया दिया जाए अपने विचारो को खुले तौर पर अभिव्यक्त करने का तो क्या आप उसका लाभ उठाना नही चाहेंगे।
आप देखते होंगे कि आपके आस-पास कुछ ऐसे लोगो की मौजूदगी होगी जो कि शायद बहुत कम बोलते है या फिर चीज़ों को अपने तक ही सीमित रहने देना चाहते है,ऐसे में ये माध्यम उनके लिए अत्यंत लाभकारी साबित होता है।
आज बस आप अपने 'इलेक्ट्रॉनिक यंत्र' पर एक क्लिक करने से दूर है और आपको दुनिया के किसी भी कोने की खबर बस यूं चुटकियों में हासिल हो जाती है।
इन सारी बातों को मद्देनजर रखते हुए एक बात तो बहुत साफ है कि सोशल मीडिया के अपने फायदे और नुकसान है,बात आ जाती है कि हम इसे अपने ज़िन्दगी में कैसे अपनाते है और प्रयोग में लाते है।
लेकिन इसकी कारिगरता पर एक सवाल ज़रूर उठता रहेगा कि ये शायद से 'लोगो को बिखेरने या तोड़ने का काम ज़्यादा कुशलता से करती है और जोड़ने का काम कम करती है!'